कोविड के दौरान मौत का शिकार हुआ था दरोगा, अब पचास लाख मिलेंगे परिजनों को
इंदौर। कोविड के दौरान संक्रमित और बाद में मौत का शिकार हुए नगर निगम के एक दरोगा को हाईकोर्ट ने 50 लाख रुपए का मुआवजा और ब्याज देने का आदेश दिया है। मृतक की पत्नी द्वारा किए गए दावे को रिलीफ कमिश्नर ने नकार दिया था।
इस फैसले से कोरोना के दौरान मौत का शिकार हुए अन्य लोगों के परिजन को भी संबल मिलेगा, जो अपने हक की लड़ाई के लिए भटक रहे हैं। मामला ये है कि नगर निगम के सहायक दरोगा जगदीश करोसिया ड्यूटी के दौरान 23 अगस्त 2020 को कोविड का शिकार हो गए थे। बाद में 29 अगस्त 2020 को उनकी मौत हो गई। पत्नी अलका ने मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना में आवेदन देकर 50 लाख रुपए का क्लेम मांगा, लेकिन रिलीफ कमिश्नर भोपाल ने आवेदन निरस्त कर दिया।
इस फैसले से कोरोना के दौरान मौत का शिकार हुए अन्य लोगों के परिजन को भी संबल मिलेगा, जो अपने हक की लड़ाई के लिए भटक रहे हैं। मामला ये है कि नगर निगम के सहायक दरोगा जगदीश करोसिया ड्यूटी के दौरान 23 अगस्त 2020 को कोविड का शिकार हो गए थे। बाद में 29 अगस्त 2020 को उनकी मौत हो गई। पत्नी अलका ने मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना में आवेदन देकर 50 लाख रुपए का क्लेम मांगा, लेकिन रिलीफ कमिश्नर भोपाल ने आवेदन निरस्त कर दिया।
पत्नी अलका करोसिया विभिन्न स्थानों पर आवेदन लेकर पहुंची, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद वे हाईकोर्ट पहुंचीं। उन्होंने बताया कि पति जगदीश का कोविड से संक्रमित मरीजों के घर के अंदर तक आना-जाना रहता था। इसी दौरान वे संक्रमित हुए। ये बात निगम अधिकारी ने भी लिखी। इतना ही नहीं, तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह ने भी मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना के लिए मृतक जगदीश का नाम भेजा था। रिलीफ कमिश्नर भोपाल को ऑर्डर किए थे, लेकिन भोपाल से अपात्र बताकर केस रिजेक्ट कर दिया। कारण का खुलासा नहीं किया, क्योंकि अपात्र हैं, बस इतना लिखा कि ये कवर नहीं होते हैं।
जवाब देने के लिए लगातार मांगते रहे समय
उन्होंने बताया कि पिछले साल अक्टूबर में हाईकोर्ट में पत्नी अलका द्वारा याचिका लगाई गई। मामले में सुनवाई शुरू हुई। नगर निगम से जवाब मांगा गया। उन्होंने मृतक का फेवर किया। निगम ने 20 मार्च 2024 को अपना जवाब कोर्ट में पेश किया, जिसमें जगदीश को सुपरवाइजर माना। कोविड मुआवजे का पात्र होना बताया, लेकिन रिलीफ कमिश्नर भोपाल की तरफ से पक्ष रखने वाले एडवोकेट ने विरोध किया। साथ ही रिप्लाई के लिए लगातार समय लेते रहे। आखिरकार 2 जुलाई 2024 को अपना जवाब कोर्ट में दिया और मृतक को योजना के तहत कवर नहीं होना बताया।