गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात से प्रतिबंध हटा

 

भोपाल । केंद्र सरकार ने गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात से प्रतिबंध हटा दिया है। निर्यातकों ने इस फैसले का स्वागत किया। घरेलू बाजार में चावल की उपलब्धता और कीमत नियंत्रण में रखने के लिए सरकार ने जुलाई 2023 में निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी। जानकारों का कहना है कि गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने का भारत का साहसिक निर्णय कृषि क्षेत्र के लिए एक गेम-चेंजर है। इस राजनीतिक कदम से निर्यातकों की आय बढ़ेगी। साथ ही किसान भी सशक्त होंगे क्योंकि उन्हें आगामी खरीफ फसल की अच्छी कीमत मिलेगी। भारत सरकार के इस निर्णय से मप्र के किसान और निर्यातकों के आय में वृद्धि होगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस निर्णय को कृषि निर्यात में सुदृढ़ीकरण की दिशा में बड़ा कदम बताया है। उन्होंने कहा कि इस निर्णय से देश और मप्र के चावल उत्पादकों को भरपूर राहत मिलेगी।
गौरतलब है कि केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के विदेश व्यापार महानिदेशालय ने गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात के लिए 490 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य निर्धारित किया है। इसके अतिरिक्त, पारबाइल्ड और ब्राउन चावल पर निर्यात शुल्क को 20 से घटाकर 10 प्रतिशत किया है। गैर बासमती चावल के निर्यात से प्रतिबंध हटने से मध्य प्रदेश से इस श्रेणी का चावल विदेश जाने का असर यहां के किसानों की आय को बढ़ाएगा। प्रदेश से निर्यात भी बढ़ेगा।
मप्र में बढ़ रहा धान का रकबा
मप्र में धान का क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है। धान उत्पादन क्षेत्रों में जबलपुर, मंडला, बालाघाट और सिवनी शामिल हैं। मंडला और डिंडौरी के जनजातीय क्षेत्रों का सुगंधित चावल और बालाघाट के चिन्नौर चावल को जीआई टैग प्राप्त है, जिससे यहां के चावल को अंतरराष्ट्रीय बाजार में लोकप्रियता मिली है। प्रदेश से चीन, अमेरिका, यूएई और यूरोप के बाजारों में चावल निर्यात किया जाता है। धान का क्षेत्र बढऩे के साथ ही चावल उद्योग भी तेजी से बढ़ा है। पिछले वर्षों में 200 से अधिक नई चावल मिलों की स्थापना हुई है। बता दें कि पिछले 10 वर्ष में प्रदेश से 12,706 करोड़ रुपये के चावल का निर्यात हुआ। वर्ष 2024 में 3,634 करोड़ रुपये के चावल का निर्यात किया गया है, जो सर्वाधिक रहा है। भारत का निर्यात दुनिया के अगले चार सबसे बड़े निर्यातकों के संयुक्त निर्यात से भी ज्यादा था। इनमें थाईलैंड, वियतनाम, पाकिस्तान और अमेरिका शामिल हैं। भारत से गैर-बासमती चावल खरीदने वाले मुख्य देशों में लेनिन, बांग्लादेश, अंगोला, कैमरून, जिबूती, गिनी, आइवरी कोस्ट, केन्या और नेपाल शामिल हैं। ईरान, इराक और सऊदी अरब मुख्य रूप से भारत से बासमती चावल खरीदते हैं। 2023 में लगाए गए प्रतिबंधों के कारण भारत का चावल निर्यात 20 प्रतिशत घटकर 1.78 करोड़ टन रह गया था। 2024 के पहले सात महीनों में भी निर्यात पिछले साल की तुलना में एक-चौथाई कम रहा। भारत के निर्यात कम करने से एशियाई और अफ्रीकी खरीदारों को थाईलैंड, वियतनाम, पाकिस्तान और म्यांमार से चावल खरीदना पड़ रहा था।
निर्यात शुल्क भी घटाया
वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले राजस्व विभाग ने कहा कि उसने ‘ब्राउन राइस’ और धान पर निर्यात शुल्क भी घटाकर 10 फीसदी कर दिया है। चावल की इन किस्मों के साथ गैर-बासमती सफेद चावल पर निर्यात शुल्क अब तक 20 फीसदी था। अधिसूचना में कहा गया है कि नई दरें 27 सितंबर, 2024 से प्रभावी हो गई हैं। इसी महीने सरकार ने निर्यात को बढ़ावा देने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए बासमती चावल के न्यूनतम निर्यात मूल्य को समाप्त कर दिया था। देश ने चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-जुलाई के दौरान 18.9 करोड़ डॉलर मूल्य का गैर-बासमती सफेद चावल निर्यात किया है। पिछले वित्त वर्ष (2023-24) में यह 85.25 करोड़ डॉलर था। प्रतिबंध के बावजूद सरकार मालदीव, मॉरीशस, यूएई और अफ्रीकी देशों जैसे मित्र देशों को निर्यात की अनुमति दे रही थी। चावल की इस किस्म की भारत में व्यापक खपत है। वैश्विक बाजारों में भी इसकी मांग है। विशेष रूप से उन देशों में जहां बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी हैं।