सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों का टोटा, प्रवेश बढ़ाने के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, पंचायत सचिवों और रोजगार सहायकों को टारगेट

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उज्जैन। पूरे प्रदेश के साथ ही उज्जैन जिले में भी सरकारी स्कूलों के हाल बेहाल है। इन स्कूलों में विद्यार्थियों का टोटा बना हुआ है अर्थात विद्यार्थियों की संख्या बहुत कम है तो वहीं कई स्कूल ऐसे भी है जहां विद्यार्थियों का प्रवेश ही नहीं हो सका है। अब ऐसी स्थिति में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ ही पंचायत सचिवों और रोजगार सहायकों को सौ प्रतिशत प्रवेश बढ़ाने के लिए टारगेट दिया गया है अर्थात ये तीनों घर घर जाकर विद्यार्थियों को सरकारी स्कूलों में प्रवेश कराने के लिए जोर
आजमाइश करेंगे।
मध्यप्रदेश में जहां एक तरफ सरकारी सीएम राइज स्कूलों में बच्चों के एडमिशन के लिए लंबी वेटिंग रहती है, तो वहीं, दूसरी ओर पहले से चल रहे सरकारी स्कूलों में बच्चों का एडमिशन कराने में अभिभावक रुचि नहीं ले रहे हैं। जिससे राज्य में करीब साढ़े पांच हजार सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहां बच्चों की संख्या शून्य हो गई है। यानी अब ये स्कूली बच्चों की राह ताक रहे हैं। ऐसे में स्कूल शिक्षा विभाग अब सरकारी स्कूलों में प्रवेश बढ़ाने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, ग्राम पंचायत सचिव और ग्राम पंचायत में रोजगार सहायकों को टारगेट देने के निर्देश दिए हैं। स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह ने कहा है सभी कर्मचारी स्कूलों में 100 प्रतिशत प्रवेश  के लिए घर-घर तक जाएं। राज्य शिक्षा केंद्र द्वारा जारी किए गए वार्षिक आंकड़े में बताया गया है कि शैक्षणिक सत्र 2024-25 में 5500 स्कूल ऐसे हैं, जहां पहली कक्षा में एक भी एडमिशन नहीं हुआ है। यानी कि इन स्कूलों में अब पहली कक्षा 0 ईयर घोषित की जाएगी। वहीं करीब 25 हजार स्कूल ऐसे हैं, जहां 1-2 एडमिशन ही हुए हैं। प्रदेश में 11,345 स्कूलों में केवल 10 एडमिशन हुए। इसी तरह करीब 23 हजार स्कूल ऐसे भी हैं, जहां मात्र 3 से 5 बच्चों ने ही एडमिशन लिया है।  सरकारी स्कूलों में बच्चों को एडमिशन नहीं लेने को लेकर कहा जाता है कि अधिकतर स्कूल अतिथि शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं। नियमित शिक्षकों की कमी है। निजी स्कूल की अपेक्षा सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता की कमी है। सरकारी स्कूलों में टायलेट, पेयजल और भवन समेत अन्य मूलभूत सुविधाओं की कमी है। वर्तमान में अभिभावक अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम में पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन अधिकतर सरकारी स्कूलों में इंग्लिश मीडियम के टीचर नहीं हैं। वहीं, सरकारी स्कूल के बच्चों को दिया जाने वाला मध्यान्ह भोजन और निशुल्क यूनीफार्म-किताब वितरण में बच्चों को सरकारी स्कूल बुलाने में कमजोर साबित हो रहा है।

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