हाई कोर्ट की अवमानना में स्कूली शिक्षा विभाग अव्वल, मप्र में हर शिक्षक भर्ती में विवाद है

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प्रमुख सचिव, आयुक्त के खिलाफ शिक्षकों ने अवमानना के मामले लगा रखे हैं

भोपाल। यूं भले ही शिक्षा विभाग दावा करता हो कि सरकारी स्कूलों में अच्छी शिक्षा दी जा रही हो लेकिन कोर्ट के आदेशों का पालन करने में शिक्षा विभाग पीछे है। कई बार माननीय कोर्ट ने आदेश दिए हो लेकिन बावजूद इसके अवमानना करने में विभाग अव्वल है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार  मप्र हाईकोर्ट जबलपुर में अकेले भर्ती परीक्षाओं से जुड़े विवादों को लेकर 10 हजार कैंडिडेट्स ने 200 से अधिक याचिकाएं लगा रखीं हैं। उधर, हाई कोर्ट द्वारा जारी आदेशों का पालन नहीं करने के एक-दो नहीं, बल्कि विभाग के खिलाफ अवमानना के 39 मामले हाई कोर्ट में विचाराधीन हैं। 29 अन्य विभाग के भी हैं, जिनके खिलाफ कंटेम्प्ट के प्रकरण चल रहे हैं। हालांकि अवमानना के अधिकांश मामले विभागों में पदस्थ तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी स्तर के कर्मचारियों के हैं। अवमानना के ज्यादातर मामले हाई कोर्ट की सिंगल बेंच द्वारा दिए आदेशों का पालन नहीं करने पर दायर किए गए हैं। वहीं डिविजन बेंच में सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ सरकारी अपील भी निरस्त हो गई। इसके बाद भी आदेश का पालन नहीं होने पर अवमानना दायर की गई। मप्र में हर शिक्षक भर्ती में विवाद है।
2018 और उसके बाद हुई परीक्षा और भर्ती को लेकर जो स्थिति बनी उससे ऐसा लगता है मानो स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारी खुद उम्मीदवारों को कोर्ट जाने की नसीहत दे रहे हों। हालांकि जो मामले कोर्ट पहुंच रहे हैं उनमें भर्ती विवाद के अलावा समयमान वेतनमान, प्रमोशन, निलंबन बहाल होने के बाद भी नौकरी पर नहीं लेने, बहाल होने पर निलंबन अवधि का पैसा नहीं दिए जाने जैसे मामले भी कोर्ट पहुंच रहे हैं। दरअसल, शिक्षकों द्वारा समयमान वेतनमान, प्रमोशन, निलंबन बहाल होने के बाद भी नौकरी पर नहीं लेने, बहाल होने पर निलंबन अवधि का पैसा नहीं दिए जाने के मामलों में हाई कोर्ट ने आदेश दे रखे हैं, लेकिन विभाग इन आदेशों का पालन नहीं करता। नतीजा प्रमुख सचिव, आयुक्त के खिलाफ शिक्षकों ने अवमानना के मामले लगा रखे हैं। अधिकारियों पर खड़े हो रहे सवाल पूरे मामले में शिक्षा विभाग के अधिकारियों के रवैये पर ही सवाल है। लाखों की सैलरी लेने वाले इन अधिकारियों से न तो शिक्षकों से जुड़े विवाद सुलझ पा रहे हैं और ना ही एक भी भर्ती बिना विवादों के पूरी करवा पा रहे हैं। इसमें तर्क ये आ सकता है कि अधिकारी किसी को कोर्ट जानें से नहीं रोक सकते। बिल्कुल सही भी है, लेकिन बीते 10 महीने में भर्ती विवाद से जुड़े मामले में कोर्ट का एक भी ऐसा डिसीजन सामने नहीं आया जब कैंडिडेट की याचिका को गलत और अधिकारियों की कार्रवाई को सही माना हो।

इन मामलों को लेकर भी हाईकोर्ट में लगे केस

बच्चों को शिक्षा, अनुशासन और नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाला शिक्षा विभाग ही आज्ञाकारी नहीं है। हाई कोर्ट द्वारा जारी आदेशों का पालन नहीं करने में विभाग अव्वल है। शिक्षकों द्वारा समयमान वेतनमान, प्रमोशन, निलंबन बहाल होने के बाद भी नौकरी पर नहीं लेने, बहाल होने पर निलंबन अवधि का पैसा नहीं दिए जाने के मामलों में हाई कोर्ट ने आदेश दे रखे हैं, लेकिन विभाग इन आदेशों का पालन नहीं करता। नतीजा प्रमुख सचिव, आयुक्त के खिलाफ शिक्षकों ने अवमानना के मामले लगा रखे हैं। हाईकोर्ट के अधिवक्ता धीरज तिवारी ने बताया कि स्कूल शिक्षा विभाग और लोक शिक्षण संचालनालय में अधिकारी सालों से जमे बैठे हैं। ये किसी की कुछ सुनने को तैयार नहीं। खुद को अंतिम सत्य मानकर बैठे हैं। यही कारण है कि मजबूरी में उम्मीदवारों को न्याय के लिए कोर्ट जाना पड़ रहा है। पूर्व के कुछ अधिकारियों के अडिय़ल रवैया का भी विभाग को खामियाजा उठाना पड़ा। अधिवक्ता आनंद अग्रवाल के मुताबिक, खेल अधिकारी घनश्याम पाल को शिक्षा विभाग ने रिटायर होने के बाद पीएफ, ग्रेच्युटी नहीं दी। गलती से ज्यादा वेतन देने के नाम पर सुविधा रोक दी थी। हाई कोर्ट ने ब्याज सहित भुगतान करने के आदेश दिए तो उसका भी पालन नहीं किया।

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