खील और बताशे चढ़ाने की परंपरा के पीछे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

दिवाली पर लक्ष्मी और गणेश जी को खील और बताशे चढ़ाने की परंपरा के पीछे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है. इसका संबंध समृद्धि, खुशहाली, और मिठास से है, जो लक्ष्मी और गणेश जी की कृपा प्राप्त करने के लिए भोग के रूप में चढ़ाई जाती हैं. दिवाली का त्योहार प्रकाश और उल्लास का पर्व है. इस दिन लोग अपने घरों को सजाते हैं और मिठाइयां बनाते हैं. खील और बताशे भी इसी परंपरा का हिस्सा हैं. दिवाली के दिन परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिलकर पूजा करते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं.

खील और बताशे को सभी सदस्य मिलकर खाते हैं, जिससे परिवार में प्यार बढ़ता है. दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश जी को खील और बताशे चढ़ाने की परंपरा धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी इसका पालन किया जाता है. माना जाता है कि खील और बताशे माता लक्ष्मी को बेहद प्रिय हैं. माना जाता है कि ये प्रसाद माता लक्ष्मी को प्रसन्न करते हैं. दिवाली के दिन माता लक्ष्मी घर में धन और समृद्धि लाती हैं, इसलिए इनका प्रसाद चढ़ाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है. भगवान गणेश को भी खील और बताशे बहुत पसंद हैं. इन्हें चढ़ाने से गणेश जी प्रसन्न होते हैं और वे सभी कार्यों में सफलता प्रदान करते हैं. खील और बताशे को शुभता का प्रतीक माना जाता है. ये सफेद रंग के होते हैं जो शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है. हिंदू धर्म में मीठी चीजों को देवताओं को अर्पित करने का विशेष महत्व है. खील फूले हुए चावल होते हैं, जो समृद्धि और विकास का प्रतीक माने जाते हैं. खील का हल्कापन और उसका आकार इस बात का संकेत देते हैं कि जीवन में सुख और समृद्धि धीरे-धीरे और सहजता से बढ़नी चाहिए, जैसे खील फूला हुआ होता है. बताशे मिठास और शुभता का प्रतीक होते हैं. चीनी से बने बताशे जीवन में मिठास और शांति का प्रतीक माने जाते हैं. माना जाता हैं इन्हें चढ़ाने से देवी लक्ष्मी और गणेश जी की कृपा से जीवन में मिठास और प्रेम बना रहता है.