धीरेन्द्र शास्त्री की हिंदुत्व यात्रा में शामिल हुए जयवर्धन, हिंदुत्व की राजनीति को लेकर नया समीकरण आया सामने, दिग्गी से अलग थलग राजनीति करने में माहिर बेटा

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इंदौर। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भले ही मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करते रहे हैं, लेकिन उनके बेटे और पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह की राह इस मामले में पिता से अलग दिखाई दे रही है।
भले ही दिग्विजय स्वयं को सबसे बड़ा सनातनी कहते हैं लेकिन हिंदू आतंकवाद, बाटला हाउस एनकाउंटर, आरएसएस के खिलाफ दिए उनके पहले के बयानों से समाज का एक बड़ा वर्ग नाराज रहा है।
इसी को भांपकर उनके बेटे
जयवर्धन सिंह का सनातनी चेहरा सामने आया है। ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है , क्योंकि जयवर्धन सिंह ने पिछले दिनों बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री की पदयात्रा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
खास बात यह है कि उन्होंने अपने समर्थक कांग्रेसी नेताओं से कहा कि वो हिंदुत्व और सनातन के खिलाफ कुछ भी ना बोलें। वैसे भी जयवर्धन सिंह की राजनीति करने की शैली दिग्विजय सिंह से बिल्कुल अलग है।
उनका व्यवहार एक गंभीर, सौम्य और परिष्कृत नेता की तरह होता है। विवादास्पद मुद्दों पर भी जयवर्धन सिंह कभी नहीं बोलते। खासतौर पर दिग्विजय सिंह ने जिस तरह से खास रणनीति के तहत खुद की इमेज प्रो मुस्लिम नेता की है। वैसा जयवर्धन सिंह बिल्कुल नहीं करते। हालांकि व्यक्तिगत रूप से दिग्विजय सिंह भी धार्मिक हिंदू हैं, लेकिन राजनीतिक रूप से उनके विचार नेहरू वादी, प्रो मुस्लिम या वामपंथ की ओर झुके हुए हैं।
जयवर्धन सिंह पिछले दिनों कथावाचक पं. धीरेंद्र शास्त्री की सनातन हिंदू एकता पदयात्रा में शामिल हुए। उन्होंने यह भी कहा कि हिंदुओं में एकता जरूरी है और यह यात्रा किसी दल विशेष की नहीं बल्कि सनातन धर्म की है। जयवर्धन की इस राह ने स्पष्ट कर दिया कि वह अपने पिता की तरह मुस्लिम परस्त राजनीति नहीं करेंगे।
बता दें, जयवर्धन कमलनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। अभी राघौगढ़ से विधायक हैं। इन दिनों जब कांग्रेस देश में जाति आधारित जनगणना की राजनीति को हवा देने में जुटी हुई है। ऐसे में जयवर्धन सिंह का यह कदम अलग ही कहा जाएगा।
दरअसल, सनातन हिंदू एकता यात्रा 21 नवंबर से से छतरपुर स्थित बागेश्वर धाम से शुरू हुई और 29 नवंबर को ओरछा में समाप्त होगी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा से लेकर कई बड़े भाजपा नेता इस यात्रा में शामिल हो चुके हैं। जयवर्धन का यह कदम कांग्रेस के एक बड़े वर्ग द्वारा पसंद किया जा रहा है।
जयवर्धन ने पं. धीरेंद्र शास्त्री के ‘जात-पांत की करो विदाई, हम सब हिंदू भाई-भाई’ जैसे नारे का साथ देकर भविष्य की राजनीति भी स्पष्ट कर दी है। इसे जयवर्धन की मजबूरी कहें या कुछ और लेकिन उन्होंने साफ कर दिया कि वह ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे, जिससे बहुसंख्यक वर्ग नाराज हो। जानकारों के अनुसार, कांग्रेस की दुर्दशा का एक बड़ा कारण उसकी तुष्टीकरण की राजनीति रही है। मुस्लिम हितैषी होने का दिखावा करने का खामियाजा कांग्रेस भुगत रही है।
जयवर्धन नई पीढ़ी के नेता हैं। वह देश की राजनीति की नब्ज को समझ रहे हैं। दरअसल मध्य प्रदेश की कांग्रेस भी सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चल रही है। कमलनाथ ने प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस कार्यालय में रामनवमी और हनुमान जयंती मनाने का लिखित सर्कुलर जारी किया था। जीतू पटवारी भी कमलनाथ की राह पर ही चल रहे हैं।
जाहिर है प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को समझ में आ गया है कि मध्य प्रदेश में हिंदुत्व का विरोध करके भाजपा से मुकाबला नहीं किया जा सकता।

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