सुबह हो या फिर शाम…काम ही काम….हाय ! ये अधिकारी और कर्मचारी…..! रिटायर होने की कगार पर है, नई भर्तियां नहीं इसलिए काम के बोझ में दब रहे

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उज्जैन। जिले में भले ही सरकारी कार्यालयों में कर्मचारी या अधिकारी काम करते हुए नजर आते हो लेकिन उनकी अंदर की पीड़ा समझने वाला कोई नहीं है। दरअसल लंबे समय से नई भर्तियां नहीं होने के कारण ऐसे अधिकारी या कर्मचारियों पर काम का बोझ बढ़ गया है जो रिटायर होने की कगार पर है। बावजूद इसके सुबह ऑफिस खुलने और शाम को ऑफिस बंद होने तक ऐसे कर्मचारी और अफसरों को काम करना ही पड़ रहा है।  हालांकि अब सीएम ने सरकारी दफ्तरों में खाली पदों की जानकारी मांगी है। बता दें कि जिले में शासकीय कार्यालयों में कई पद रिक्त पड़े हुए लेकिन नई भर्तियां नहीं होने के कारण मौजूदा कर्मचारी या अधिकारियों को ही दुगना तिगुना काम करना पड़ रहा है।

माना जाता है कि अधिकारी-कर्मचारी जितने युवा होंगे, सरकारी व्यवस्था उतनी दुरूस्त होगी। लेकिन मप्र में स्थिति यह है कि अधिकारी-कर्मचारी लगातार रिटायर हो रहे हैं और उस अनुपात में भर्तियां नहीं हो रही हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि मंत्रालय से लेकर अन्य शासकीय कार्यालयों में उम्रदराज अधिकारियों-कर्मचारियों पर काम का बोझ बढ़ गया है।   खासकर कागजी काम करने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों की उम्र अधिक है।   आंकड़ों के अनुसार मप्र के 73 फीसदी क्लास-वन अधिकारी और 53 फीसदी क्लास-टू अफसरों की उम्र 45 साल से ज्यादा है। इसके अनुपात में क्लास-वन युवा अफसरों की संख्या 27 प्रतिशत तो क्लास टू कैटेगरी के अधिकारी 47 प्रतिशत हैं। आने वाले 5 साल में सभी कैटेगरी के एक लाख से ज्यादा अधिकारी-कर्मचारी रिटायर होने वाले हैं। इस स्थिति ने सरकार को चिंता में डाल दिया है।  प्रशासनिक अधिकारियों-कर्मचारियों की स्थिति का अहसास होने के बाद कैबिनेट मीटिंग में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सभी विभागों से खाली पदों का ब्योरा मांगा है।  मप्र में 45 साल से कम उम्र वाले कुल अधिकारी-कर्मचारियों की संख्या 3 लाख 7 हजार 315 है, जो कुल कर्मचारियों का 52 फीसदी है। 46 से 61 साल की उम्र के कर्मचारियों की संख्या 2 लाख 83 हजार 235 हैं, जो कुल कर्मचारियों का 48 फीसदी है। युवा और उम्रदराज कर्मचारियों के बीच केवल 4 फीसदी का अंतर है। जानकारों के मुताबिक, ये रेश्यो 60:40 का होना चाहिए यानी 60 फीसदी युवा और 40 फीसदी उम्रदराज कर्मचारी-अधिकारी होने चाहिए। क्लास-वन अधिकारियों की बात की जाए तो इनकी कुल संख्या 8 हजार 49 हैं। इनमें से 2135 यानी 27 फीसदी अधिकारी 45 साल से कम उम्र के हैं। 46 से 61 साल से ज्यादा उम्र वाले अधिकारियों की संख्या 5 हजार 914 है, जो कुल अधिकारियों की संख्या का 73 फीसदी है। क्लास-वन अधिकारी राजपत्रित अधिकारी होते हैं।
प्रशासनिक मशीनरी को चलाने में इनका अहम रोल होता है। मप्र में क्लास टू अधिकारियों की कुल संख्या 38 हजार 432 हैं। क्लास वन अधिकारियों से इनकी संख्या करीब साढ़े चार गुना ज्यादा है। ये भी राजपत्रित अधिकारी होते हैं। क्लास वन अधिकारियों के बाद क्लास टू अधिकारी प्रशासनिक मशीनरी को चलाने में अहम भूमिका निभाते हैं। इनका काम सरकारी योजनाओं को जमीन पर उतारने का है। इनमें से 17 हजार 871 यानी 47 फीसदी कर्मचारियों की उम्र 45 से कम है जबकि 46 से 61 से ज्यादा उम्र वाले अधिकारियों की संख्या 20 हजार 561 है, जो कुल अधिकारियों का 53 फीसदी है। मप्र में तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों की संख्या 4 लाख 84 हजार 928 हैं। कर्मचारियों की ये सबसे ज्यादा संख्या है। सरकारी दफ्तरों के बाबू तृतीय श्रेणी कर्मचारी कहलाते हैं। योजनाओं के क्रियान्वयन में ये अहम भूमिका निभाते हैं। इस संवर्ग में युवा कर्मचारियों की संख्या सबसे ज्यादा है। 4 लाख कर्मचारियों में 45 साल से कम उम्र के कर्मचारियों की संख्या 2 लाख 60 हजार 927 है, जो कुल कर्मचारियों का 54 फीसदी है। जबकि 46 से 61 साल से ज्यादा उम्र के कर्मचारियों की संख्या 2 लाख 24 हजार 01 है, जो कुल कर्मचारियों का 46 फीसदी है। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की फौज भी उम्रदराज है। इस कैटेगरी में प्यून, ऑफिस बॉय, चौकीदार, सफाईकर्मी शामिल हैं। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की कुल संख्या 59 हजार 141 हैं। इनमें से 45 साल से कम उम्र वाले कर्मचारियों की संख्या 26 हजार 382 हैं, जो कुल कर्मचारियों का 45 फीसदी है। वहीं, 46 से 61 साल से ज्यादा उम्र के कर्मचारियों की संख्या 32 हजार 759 हैं, जो कुल कर्मचारियों का 55 फीसदी है। इनमें भी 51 से 55 साल के कर्मचारियों की संख्या सबसे ज्यादा 10 हजार 660 हैं।

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