मैदानी कार्यकर्ताओं के लिए मजाक बनें, भाजपा के संगठन चुनाव में विधायकों की ही चली

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इंदौर। ग्रासरूट लेवल पर लगातार सक्रिय रहने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए संगठन चुनाव की प्रक्रिया किसी मजाक से काम नहीं साबित हुई। पार्टी के तमाम दावे और संगठन पुरुषों की नसीहत में धरी की धरी रह गई। मंडल अध्यक्ष उन्ही चेहरे को बनाया गया जिन्हें विधायकों ने आगे किया।
अब कार्यकर्ता प्रदेश नेतृत्व से सवाल कर रहे है कि जब विधायकों की पसंद से ही मंडल अध्यक्ष बने थे तो फिर चुनाव का नाटक क्यों किया गया। सीधे ही विधायकों को बुलाकर उनसे लिस्ट ली जाती और मंडल अध्यक्ष बना दिए जाते। इंदौर नगर में भाजपा निर्धारित समय तक अपनी सूची जारी नहीं कर पाई क्योंकि कुछ विधानसभा क्षेत्र में बड़े नेताओं के बीच रस्साकसी थी।

2 दिन पूर्व बड़ी मुश्किल से नगर के मंडल अध्यक्षों के नाम घोषित किए गए। पार्टी ने इस बार तय किया है कि मंडल अध्यक्ष किसी भी सूरत में 45 साल से ज्यादा उम्र का नही हो। जिलाध्यक्ष के लिए ये उम्र ही था कि भाजपा पहली बार उम्र के दायरे में मंडल इकाई गठित कर रही है। अभी तक उम्र का पैमाना शिथिल था। लिहाजा मंडल अध्यक्ष मनोनीत करने में ज्यादा दिक्कतें नहीं आती थीं।
भाजपा संगठन चुनाव में इस बार संगठन की साख व धाक जमाने मैदान में उतरी थी। प्रदेश नेतृत्व की मंशा थी कि संगठन, सत्ता से अलग नजर आये। यानि विधायक व सांसदों, बड़े नेताओं की पसंद का फॉर्मूला इस बार नहीं चलेगा। संगठन नेताओ ने दम के साथ दावा ऐसा ही किया गया था लेकिन जमीन तक आते आते इस दावे का दम निकल गया।

जिला इकाई में भी विधायक की पसंद से मंडल अध्यक्ष मनोनीत हुए। नगर भाजपा में भी वही सूरते हाल है। दरअसल, प्रदेश नेतृव ने इन्दौरी विधायको के समक्ष हथियार डाल दिये। हालाकि, पार्टी द्वारा महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का दावा किया गया था, लेकिन शहर और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में यह लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया। शहर के 33 मंडलों में से केवल दो महिलाओं को अध्यक्ष बनाया गया है।
लक्ष्मणसिंह गौड़ मंडल के लिए इंदु श्रीवास्तव और एपीजे अब्दुल कलाम मंडल के लिए परवीन बी को जिम्मेदारी सौंपी गई है। परवीन बी इस सूची में शामिल होने वाली एकमात्र मुस्लिम महिला है। वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में किसी भी महिला को अध्यक्ष नहीं बनाया गया, जिससे पार्टी के इस निर्णय पर सवाल उठ रहे हैं।
मंडल अध्यक्षों की सूची तैयार करने में संगठन को कई स्तरों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। विधानसभा-1 में सभी मंडल अध्यक्ष बदले गए, जबकि कुछ पुराने अध्यक्षों ने पद पर बने रहने की इच्छा जताई थी, जिसे संगठन ने नामंजूर कर दिया। विधानसभा-2 में एक मंडल के लिए रायशुमारी से पहले ही विरोध और शिकायतें सामने आई। विधानसभा-4 में पूर्व मंडल अध्यक्ष सचिन जैसवानी ने रायशुमारी में नहीं बुलाए जाने की शिकायत की, जबकि विधानसभा-5 और राऊ में भी सभी मंडल अध्यक्षों को बदलने की संभावना व्यक्त की जा रही है। इस बार मंडल अध्यक्षों की सूची में विधायकों का प्रभाव स्पष्ट रूप से नजर आया, जबकि क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल ने पहले ही कहा था कि चुनाव संगठन की प्रक्रिया के तहत होंगे और विधायकों की सिफारिशों पर मंडल अध्यक्ष नहीं चुने जाएंगे।

बावजूद इसके, खासतौर पर इंदौर ग्रामीण की सूची में विधायकों का दबदबा साफ दिख रहा है। आने वाले चुनावों में इन मंडल अध्यक्षों और उनकी टीमों की भूमिका को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। हालाकि, महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व न मिलना और विधायकों का बढ़ता प्रभाव पार्टी के संगठनात्मक संतुलन और पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर रहा है।
सूची की अंतिम मंजूरी भोपाल से ली गई थी, लेकिन स्थानीय नेताओं और विधायकों के बीच खीचतान ने इसे तैयार करने की प्रक्रिया को जटिल बना दिया।

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