भाजपा में मतदान केंद्र समितियां गठित होकर काम पर लगी, कांग्रेस में संगठन के अते-पते नहीं
इंदौर। भाजपा में संगठन चुनाव के नाम पर विधायकों की पसंद से नियुक्तियां की गई लेकिन इसमें कोई शक नहीं की मतदान केंद्र तक कि समितियां बनाने में भाजपा के संगठन पुरुषों ने खूब मेहनत की।
आज प्रदेश में भाजपा ने सभी मतदान केन्द्रों पर मतदान केंद्र समितियां बनाकर उन्हें एक्टिव कर दिया है। भाजपा ने ऐसा तब किया है, जब विधानसभा चुनाव अभी 4 वर्ष दूर हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस की क्या स्थिति है ? पिछले 8 वर्षों से इंदौर शहर कांग्रेस कमेटी का गठन नहीं हो पाया है।
प्रमोद टंडन के समय शहर कांग्रेस की कमेटी गठित हुई थी। उसके बाद विनय बाकलीवाल और अब सुरजीत सिंह लोक चड्डा बिना कमेटी के काम कर रहे हैं। यही स्थिति ग्रामीण की है। कांग्रेस के नेताओं को हवाबाजी और बयान बाजी से फुर्सत नहीं है। संगठन की मजबूती की तरफ कांग्रेस भाजपा के बीच का यही अंतर जब चुनाव परिणामों में बदलता है तो कांग्रेस ईवीएम ईवीएम का रट लगती है। दरअसल, सतत दो महीने भाजपा ने संगठन को नए सिरे से चाकचौबंद करने के काम को पर्व के रूप में मनाया।
जिलेवार, मंडलवार ही नही, बूथ स्तर तक वरिष्ठ नेताओ को भेजकर चुनाव प्रक्रिया पूर्ण कर ली। अब नगर व जिलाध्यक्ष पद पर चयन की तैयारी शुरू हो गई। सब कुछ समय पर हुआ। 15 दिसंबर तक बूथ व मंडल इकाई खड़ी करना थी। हो गई। अब 31 दिसंबर तक नगर व जिला इकाइयों का गठन शुरू हो गया।
पूरे शहर में पार्टी का नया नेतृत्व ढोल बाजे के साथ घूम रहा हैं और ‘बूथ जीता-चुनाव जीता’ के सूत्र वाक्य को आत्मसात कर रहा हैं। करीब दो महीने से भाजपा एक जैसी भिड़ी हुई हैं। सबसे पहले सदस्यता अभियान चलाया। इसके बाद सक्रिय सदस्य बनाएं। बाद में संगठन चुनाव प्रक्रिया प्रारंभ कर मतदान केंद्र की समितियां गठित की। अब मंडल कर की इकाई का भी गठन हो चुका है। जाहिर है कांग्रेस को भाजपा के संगठन से सीखना चाहिए। कांग्रेस को समझना चाहिए कि उससे क्या गलती हो रही है? यदि पार्टी संगठन को मजबूत नहीं करेगी और मतदान केंद्र तक समितियां गठित नहीं करेगी तो फिर चुनाव कैसे जीतेगी।
जब कांग्रेस चुनाव हारती है तो ठीकरा चुनाव आयोग इलेक्ट्रॉनिक मशीन पर फोड़ देती है। कांग्रेस यह नहीं देखी कि भाजपा की मशीनरी चुनाव जीतने के लिए कितने पहले से एक्टिव हो जाती है। पार्टी ने भले ही विधायकों की पसंद के मंडल अध्यक्ष स्वीकार लिए लेकिन ये क्या कम है कि 50 प्रतिशत नए मंडल अध्यक्ष भी बनाये।
बूथ कमेटियों में नए लोगो को जोड़ने का ये आंकड़ा 65 से 70 प्रतिशत तक पहुँचा। परिणाम ये है कि ढाई हजार के लगभग इंदौर जिले के बूथों पर कमलदल एक बार फ़िर मुस्तैद हो गया। नई ऊर्जा और जोश के साथ पार्टी की बूथ कमेटियां नए सिरे से अस्तित्व में आ गई और आने वाले चुनावो के लिए अभी से मैदान में आ गई। भाजपा ने संगठन पर्व के जरिये न सिर्फ़ कांग्रेस बल्कि अन्य राजनीतिक दलों के समक्ष एक बार फिर अपने सांगठनिक ढांचे की मजबूती और पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र को साबित कर दिया। वही ‘दीनदयाल भवन’ ने भी अपनी उपयोगिता एक बार ईमानदारी से साबित कर दी और नगर मुखिया के खाते में एक और उपलब्धि दर्ज हो गई हैं।