इंदौर। गृह निर्माण संस्था पर जिला प्रशासन इतना मेहरबान रहा कि जिस कॉलोनी के विकसित करने के लिए जमीन 1993 में खरीदी गई उसके लिए सन् 1974 में ही लाइसेंस जारी कर दिया।
नगर निगम कॉलोनी सेल ने वर्ष 2003 के बाद से लगातार जमीन के हो रहे क्रय- विक्रय और भवन निर्माण पर ध्यान नहीं दिया और चालाकी करते हुए 9 साल बाद इस अवैध कॉलोनी बताकर करवाई आरंभ कर दी है।
जिले में जमीनों के जादूगर और भूमाफियाओं का हौसला निगम और प्रशासन के जिम्मेदारों की सांठगांठ से लंबे समय से चल रहा है। वर्तमान में अवैध कॉलोनी विकसित करने वालों के विरुद्ध जिला प्रशासन द्वारा सतत कार्रवाई की जा रही है, वहीं नगर निगम कॉलोनी सेल भी जांच के बाद पुलिस में प्राथमिक की दर्ज करवा रहा है।
नगर निगम कालोनी सेल ने हाल ही में ग्राम सिरपुर की सर्वे क्रमांक 526 पैकि 1.161 पर विकसित की गई अवैध कालोनी को लेकर 6 लोगों के विरुद्ध पुलिस में प्राथमिक दर्ज करवाई है। जिस जमीन पर या कॉलोनी विकसित बताई जा रही है वहां पर विक्रय कर कर्मचारी गृह निर्माण संस्था ने वर्ष 2006 में ही कॉलोनी विकसित कर प्लाटों का विक्रय रजिस्टर्ड विक्रय पत्र के आधार पर करना आरंभ कर दिया था।
संस्था द्वारा की गई रजिस्ट्री
में किए गए उल्लेख के अनुसार जिला प्रशासन की मिली भगत उजागर होती है। रजिस्टर्ड विक्रय पत्र क्रमांक 3983 अ दिनांक 26 दिसंबर 2006 में संस्था ने उल्लेख किया है कि उन्होंने यह जमीन पंजीकृत विक्रय लेख एक क्रमांक 446 दिनांक 27/7/1993 में खरीदी थी।
उक्त भूमि पर आवासीय कॉलोनी के विकास के लिए कलेक्टर इंदौर द्वारा मध्य प्रदेश विनिर्दिष्ट भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1982 की धारा 24 के अंतर्गत कॉलोनाइजर लाइसेंस क्रमांक 908 दिनांक 23 8 1974 को प्रकरण क्रमांक 17/93 के द्वारा दिया गया है। वहीं कॉलोनी विकास एवं निर्माण के लिए संयुक्त संचालक नगर एवं ग्राम निवेश ने 31 जुलाई 2001 को स्वीकृत अभिन्यास क्रमांक 2921 से 2927 के अनुसार स्वीकृत किया है।
उक्त टिप से स्पष्ट होता है कि सन 1974 में जिस भूमि पर कॉलोनी के लिए कॉलोनाइजर्स लाइसेंस दिया गया वह जमीन 19 साल बाद खरीदी गई। यदि उक्त पंजीकृत विक्रय लेख में टंकण त्रुटि मानी जाए तो भी जुलाई में खरीदी गई जमीन को मात्र एक माह बाद अगस्त में ही लाइसेंस किस आधार पर जारी कर दिया गया जबकि कॉलोनी इतने कम समय में ना तो विकसित हुई थी और ना ही उसमें विकास कार्य पूर्ण हुए थे।
पति-पत्नी को आवंटित किए अलग-अलग प्लॉट —
संस्था द्वारा सहकारिता अधिनियमों को भी ताक में रखकर प्लॉट का आवंटन किया गया। एक अन्य विक्रय अनुबंध के अनुसार संस्था ने एक ही परिवार के दो सदस्य पति-पत्नी डॉ. जीसी सक्सेना और माला पति डॉ. जीसी सक्सेना को क्रमशः प्लॉट क्रमांक 33 और 34 आवंटित कर दिए थे।
सिविल न्यायालय में भूमि के स्वामित्व को लेकर दायर की गई याचिका में षष्ठम अपर जिला न्यायाधीश एमके जैन ने सन 2013 में संस्था के विक्रय अनुबंध को शून्य घोषित करते हुए उक्त भूमि पूर्व भूमि स्वामी के वारिसों के नाम करने के आदेश किए थे। यह जमीन वर्ष 2013 से ही स्वर्गीय रामराव बोराडे के वारिसों के नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज है।
बोराडे परिवार ने यह जमीन आपसी सहमति के अनुसार मौखिक बंटवारा कर 6 हिस्से में बाट ली और अपने-अपने हिस्से की जमीनों का विक्रय करते आ रहे हैं। उन्होंने विक्रय कर संस्था द्वारा कराए गए डायवर्सन और नगर एवं ग्राम निवेश से स्वीकृत कॉलोनी के नक्शे अनुसार अपने हिस्से की भूमि में से प्लाटों का विक्रय किया जिनमें से कुछ पर लोगों ने मकान भी बना लिए हैं।
2006 की कॉलोनी में गृह निर्माण संस्था पर नहीं की कार्रवाई —
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कॉलोनियों को वैध करने के निर्देश जारी करते हुए वर्ष 2016 से पूर्व में विकसित हुई अवैध कॉलोनी की सूची नगरी निकाय और जिला प्रशासन से तैयार करवाई थी।
वर्ष 2013 और उससे पूर्व से विकसित हो रही श्रीकृष्णपुरी कॉलोनी को निगम ने इस सूची में शामिल नहीं किया। बाद में शासन ने वर्ष 2022 से पूर्व विकसित हुई अवैध कॉलोनी की सूची तैयार करने को कहा किंतु उसे सूची में भी सिरपुर गांव की यह कॉलोनी सामने नहीं आई।
नगर निगम ने हाल ही में एक शिकायत के बाद इस कॉलोनी को अवैध मानकर जांच की ओर भूमि स्वामियों के खिलाफ पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराई। शिकायतकर्ता ने जो नोटरी प्रस्तुत की है उसमें विक्रय कर गृह निर्माण संस्था के प्लाट का स्पष्ट उल्लेख है उसके बावजूद सिर्फ बोराडे परिवार पर ही कार्रवाई की गई है।
मामले में संस्था के पदाधिकारी पर भी कार्रवाई होना चाहिए किंतु उन्हें बचाते हुए निगम के कॉलोनी सेल ने एक नोटरी के गवाह रहे गौरव पिता रविंद्र द्विवेदी को अवैध कालू राजा बढ़कर उनके विरुद्ध भी प्राथमिक की दर्ज कराई है। मामले में निगम कॉलोनी सेल के जिम्मेदारों की भूमिका पर कई सवाल उठाते हैं निगम के जिम्मेदार अभी तक निगम में चल रहे इस तरह के खेल को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रहा है। उल्लेखनीय है कि नगर निगम कॉलोनी सेल स्वयं अवैध कॉलोनी को लेकर कोई जांच करना नहीं चाहता वह शिकायत का इंतजार कर रहा है और जिला प्रशासन से मिलने वाले प्रतिवेदन या सूची के अनुसार ही अपनी कार्यालय में बैठकर रिपोर्ट तैयार कर पुलिस कार्रवाई करता नजर आ रहा है।