खुसूर-फुसूर
पडोसी ने समस्या हल नहीं की सरका दी
उज्जैन धर्म नगरी है। इसकी तासीर से ही तय है कि यहां भिक्षुकों की संख्या कितनी और कैसी होगी। भांति-भांति के भिक्षुकों की संख्या यहां है। हाल यह हैं कि अच्छे खासी जमीनों का पट्टा और खसरे में नाम दर्ज महिलाएं सिद्धवट पर इस काम को अंजाम देती हैं। अन्य धार्मिक स्थलों पर भी यही हाल हैं। आसपास के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों से कुछ लोग प्रतिदिन शहर आना जाना करते हैं और प्रतिदिन की मजदूरी नहीं करते हुए यही काम करते हैं उन्हें मजदूरी से ज्यादा पैसे दिन भर में मिल जाते हैं। इनके दिन भी तय हैं कि किस दिन कहां पर ज्यादा दान की स्थिति रहेगी। प्रमुख मंदिरों के आसपास कुछ भिक्षुकों के तो क्षेत्र ही तय हैं उनके आसपास कोई अन्य के आने पर अन्यानेक प्रकार से विवाद के हाल बनाए जाते हैं। पास के शहर ने अपने आपको भिक्षुक मुक्त करने की घोषणा कर दी है। वहां पर मुंबईया स्टाईल में इस व्यापार को अंजाम दिया जाने लगा था। एक पुरा माफिया बाहर से आकर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी को अपनी चपेट में ले रहा था। पडोसी ने खुद का घर तो इस समस्या से मुक्त करने का काम किया लेकिन उसने इस समस्या का निदान न करते हुए कुछ हद तक इसे धर्म नगरी की और सरका दिया है। पिछले एक पखवाडे में जब से वहां इनसे मुक्ति का अभियान अंजाम दिया जाने लगा धर्म नगरी में भिक्षुकों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी होने लगी है। खुसूर-फुसूर है कि पूर्व में कुत्तों की समस्या को लेकर भी कई बार ऐसे मसले सामने आए थे रात अंधेरे में गाडियों से धर्मनगरी की सीमा में इन्हें छोडने के मामले सामने आए थे। इस बार ये नया मसला सामने आया है। इस विकृति को लेकर धर्मनगरी हमेशा की तरह इस बार भी पडोसी से देर से ही जागी है , पडोसी अपना धर्म और कर्म अंजाम दे चुका है।