पाकिस्तान में आज भी मूर्तिकार, नवरात्रि में बनाते हैं देवी की मूर्ति

ब्रह्मास्त्र उज्जैन. पं. राहुल शुक्ल
पडोसी देश पाकिस्तान मे कट्टरपंथी हावी हैं और वे मूर्ति के घोर विरोधी हैं क्योंकि इस्लाम में बुतों की पूजा निषेध है। इसके बावजूद ये आश्चर्य का विषय है कि वहां के सिंध इलाके में आज भी हिन्दू धर्म को माननेवाले मूर्तिकार हैं जो इस कला की विरासत को सहेज के रखे हुए हैं।
पाक के सिंध प्रांत में हिन्दुओं की संख्या पहले काफी अच्छी थी और यहां के गांवों मे मिट्टी से मूर्ति बनानेवाले कलाकार गणेशोत्सव व नवरात्रि में सुन्दर सुन्दर मूर्तियां बनाते थे। बंटवारे के बाद पाकिस्तान से हिन्दू कलाकारों का पलायन होता गया फिर भी कुछेक कलाकार अपनी मिट्टी को न छोड़ पाए और उन्होने गांव मे रहकर खेती को अपना लिया। कहते हैं कोई भी कलाकार अपने मौलिक शौक को आसानी से छोड़ नहीं पाता इसी के चलते सिन्ध के मूर्तिकार भी अपने देवी देवताओं की मूर्तियां बनाते रहे और अपने बच्चों को ये फन सिखाते रहे। आज पाकिस्तान में मूर्तियों का प्रचलन बहुत ही कम है और मुट्ठी भर हिन्दू पर्व व उत्सव मंदिर और अपने घरों के भीतर ही मनाते हैं फिर भी कुछ कला के पुजारी इन कलाकारों की कला को सम्मान देते हुए इनकी बनाई हुई दुर्गाजी की मूर्तियां नवरात्रि आदि त्योहार पर क्रय करते हैं और ससम्मान अपने घर में सुसज्जित कर पूजा अर्चना करते हैं।
जिन्ना के बुत भी बनाए
सिन्ध का संघर शहर पुराने समय में हिन्दू आबादी वाला शहर था। यहां कुछ कुशल मूर्तिकार बसते थे। ऐसे ही एक कलाकार हैं भीमराज कोहली जो अपने पूर्वजो की इस कला को सहेजकर इसे आगे प्रोत्साहित कर रहे हैं। भीमराज की बनाई की मूर्तियां पाकिस्तान के मंदिरों और प्रमुख स्थानो की शोभा बढा रही हैं।इनमे प्रमुख हैं पाक के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की प्रतिमा व वॉल स्कलप्चर। भीमराज मिट्टी के अलावा सीमेंट व मोटी रेत से भी दीवारों पर आकृति बनाते हैं।
दुर्गाजी की मूर्तियों का चलन
संघर में ही मूर्तिकार मंगलदास रहते हैं जिन्होंने मूर्तियां बनाना भीमराज से ही सीखा और आज मंगलदास की बनाई हुई दुर्गाजी की मूर्तियों की मांग नवरात्रि के अवसर पर आसपास के इलाके में रहती है। भीमराज के अनुसार वे खेत की मिट्टी से मूर्तियां बनाते हैं। एक तीन फुट की मूर्ति बनाने में लगभग एक माह का समय लगता है। ये आय का साधन तो नही है, क्योंकि बहुत कम मूर्ति विक्रय होती है पर मूर्तिकला की पारंपरिक विरासत को सहेजने की एक कोशिश है। पाकिस्तान जैसे इस्लामी देश के हिन्दुओं की सराहना करना होगी कि वे प्रतिकूल परिस्थितियो में भी अपने धार्मिक रीति-रिवाज व कला को सहेजने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। मंगलदास जैसे कलाकार इसे अपना नैतिक दायित्व समझते हैं।