खुसूर-फुसूर वर्दी का उर्दु-फारसी प्रेम

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खुसूर-फुसूर

वर्दी का उर्दु-फारसी प्रेम

वर्दी का उर्दु प्रेम कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। अधिकांश प्रेसनोट में अब भी मशरुका,अलामत,अदमचेक जैसे शब्दों का उपयोग बराबर जारी है। वर्दी के मुख्यालय से एक वर्ष के दरमियान करीब एक शतक उर्दु शब्दों के उपयोग को प्रतिबंधित किया गया था। इसके बाद भी बराबर इन शब्दों का उपयोग जारी है। यहां तक की वर्दी के विभिन्न केंद्रों पर प्राथमिक सूचना दर्ज करते समय भी संबंधित शिकायतकर्ता के समक्ष ऐसे ही शब्दों को लेखन में उपयोग किया जा रहा है जिससे संबंधित शिकायतकर्ता भी कई बार उनके अर्थ समझने को लेकर बगल झांकने पर मजबूर हो जाता है। एक बार फिर से उर्दु के चिन्हित किए गए शब्दों के उपयोग को लेकर वर्दी मुख्यालय से पत्र जारी करते हुए आठ शब्द जो कि अधिकांश प्रचलन में वर्दी द्वारा लिए जा रहे हैं उनके उपयोग को हिदायती निर्देश जारी किए गए हैं। इसके बाद भी मशरूका, दीगर और अलामत जैसे शब्दों का प्रयोग जारी है अभी भी उर्दू और फारसी के शब्दों का इस्तेमाल हो रहा है। जबकि, उर्दू और फारसी के करीब 675 से ज्यादा शब्द चिंन्हित कर उनका हिंदी अनुवाद तैयार करवाया गया। जिसकी बकायदा वर्दी मुख्यालय ने डिक्शनरी तैयार करवाई है। यह वर्दी के केंद्रों को भी उपलब्ध करवाई गई थी। असल में

 

वर्दी की कार्रवाई में उपयोग आने वाले इस तरह के शब्द लोगों की समझ से परे थे। इस कारण आम लोगों को सामान्य काम के लिए भी जानकारो की मदद लेनी पड़ती थी। इन्हीं परेशानियों को देखते हुए ये बड़ा बदलाव किया गया था। खुसूर-फुसूर है कि वर्दी का अधिनियम जिस दौर में तैयार हुआ था उस दौर की स्थि‍ति का असर अब तक कायम है। उस दौर के क्रिया कलाप ही वर्दी छोडने को तैयार नहीं है तो शब्द तो बहुत दूर की बात है।

 

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