उज्जैन। प्रशासन की सख्ती और जागरूकता अभियान के बावजूद नरवाई जलाई जा रही है। गेहूं की फसल कटने के बाद खेतों में बचे डंठलों को हटाने की बजाय उन्हें आग के हवाले किया जा रहा है। इससे न सिर्फ खेतों की उपजाऊ शक्ति प्रभावित हो रही है, बल्कि पर्यावरण प्रदूषण भी लगातार बढ़ रहा है। नरवाई जलाने से खेतों के आसपास के पेड़-पौधे झुलस जाते हैं और कई बार यह आग वन क्षेत्र तक पहुंचकर बड़ा नुकसान कर देती है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पराली जलाने से भूमि की उर्वरता घटती है और पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है। किसानों का कहना है कि मजदूरों की कमी और हार्वेस्टर से कटाई के कारण खेत में डंठल अधिक बचते हैं, जिसे हटाने में ज्यादा खर्च होता है। ऐसे में वे समय और धन की बचत के लिए नरवाई जलाना आसान समझते हैं। प्रशासन की ओर से कार्रवाई नहीं होने से यह समस्या और बढ़ती जा रही है।
ग्रामीण क्षेत्रों में शाम के बाद ही नरवाई जल रही
प्रतिबंध के बाद भी बड़नगर रोड की तरफ के कई गांव में किसानों द्वारा नरवाई जलाई जा रही है। नरवाई की वजह से कई बार बड़ी अनहोनी की आशंका बनी रहती है। जानकारी के मुताबिक वर्तमान में 70 फीसद फसल की कटाई हो चुकी है। इस बीच नरवाई जलाने की घटनाएं रोज सामने आ रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में शाम के बाद ही नरवाई जल रही है। नरवाई जलाने की वजह से अन्य नुकसान भी हो रहे हैं।
धुएं से स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव
नरवाई जलाने से किसानों को भी बहुत नुकसान है। नरवाई जलाने से इसके धुएं की वजह से मनुष्य जीवन और स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है। आग की वजह से मिट्टी के मित्र जीवी कीट खत्म हो जाते हैं, इससे उपजाऊ पन भी प्रभाव पड़ता है। इससे पर्यावरण भी दूषित होता है। इसके बाद भी किसान खेतों को साफ करने के लिए नरवाई में आग लगा रहे हैं।