सिंहस्थ के पहले एक बार फिर शिप्रा के शुद्ध पानी  की चिंता…..! हर बार किया जाता है दावा लेकिन नहीं होती है शिप्रा शुद्ध…..एक बार फिर किया गया दावा

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उज्जैन। आगामी सिंहस्थ की तैयारियों में सूबे की मोहन सरकार तो जुटी हुई है ही वहीं शिप्रा में शुद्ध पानी के वास्ते भी सरकार ही नहीं बल्कि प्रशासन स्तर पर भी दावे किए जा रहे है और इसके लिए भोपाल स्तर से भी कागजों पर योजनाओं को बनाया जा रहा है। लेकिन यहां लिखने में गुरेज नहीं है कि हर बार शिप्रा शुद्धिकरण का दावा किया जाता है लेकिन ये दावे फेल होते रहे है। एक बार फिर दावा किया गया है कि सिंहस्थ के पहले शिप्रा का पानी शुद्ध कर दिया जाएगा। कुल मिलाकर सिंहस्थ के पहले शिप्रा शुद्धिकरण की चिंता पाली जा रही है।

जल संसाधन विभाग की इकाई का दावा है कि उज्जैन में साल 2028 में लगने वाले महाकुंभ ‘सिंहस्थ’ से पहले शिप्रा का पानी शुद्ध हो जाएगा। नदी में नालों का दूषित पानी मिलना पूरी तरह बंद होगा। इसकी शुरूआत 919 करोड़ रुपये की कान्ह डायवर्सन क्लोज डक्ट परियोजना को धरातल पर उतारने के साथ कर दी गई है। अगले चरण में 614 करोड़ 53 लाख रुपये की सेवरखेड़ी- सिलारखेड़ी मध्यम सिंचाई परियोजना का टेंडर भी  स्वीकृत कर दिया गया है। ग्वालियर की फर्म करण डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड अगले 30 महीनों में 468 करोड़ से परियोजना को आकार देगी। इसके पहले सरकार जल शुद्धि के लिए 438 करोड़ रुपये की भूमिगत सीवरेज पाइपलाइन परियोजना 1.0 का काम भी शुरू करवा चुकी है और जल्द ही 474 करोड़ की दूसरी सीवरेज पाइपलाइन परियोजना का काम शुरू कराने वाली है। इतना ही नहीं शहर के दो बड़े नालों (भैरवगढ़, पीलियाखाल) का पानी शिप्रा में सीधे मिलने से रोकने को पीलिया खाल में 78 करोड़ रुपये से भैरवगढ़ में 2.4 एमएलडी का ईटीपी (एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) और पीलिया खाल में 22 एमएलडी का एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट) लगाने को ठेकेदार चयन की कार्रवाई भी प्रचलन में है।

साढ़े तीन हजार करोड़ से अधिक खर्च

शिप्रा को निर्मल एवं अविरल बनाने पर बीते एक दशक में साढ़े तीन हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्चे जा चुके हैं। सबसे बड़ी शुरूआत 25 फरवरी 2014 को भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने नर्मदा को शिप्रा से जोड़ने के साथ की थी। तब दो नदियों का संगम कराने पर 432 करोड़ रुपए खर्चे थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि नर्मदा-शिप्रा के संगम से पूरे मालवा की धरती समृद्ध होगी। नर्मदा का जल लोगों को पेयजल के साथ सिंचाई, औद्योगिक जरूरतों के लिए भी मिलेगा। महाकुंभ सिंहस्थ और उसके बाद अब तक पेयजल और पर्व स्नान के लिए जरूरत पड़ने पर नर्मदा का जल शिप्रा में छोड़ा जाता रहा। वर्ष 2018 तक केवल प्राकृतिक प्रवाह से ही ये जल छोड़े जाने की सुविधा थी, मगर वर्ष 2019 में 139 करोड़ रुपये ओर खर्च कर पाइपलाइन के माध्यम से नर्मदा का पानी शिप्रा में छोड़ने की व्यवस्था बनाई। खास बात यह है कि सिंचाई और औद्योगिक जरूरत के लिए अभी भी उज्जैन के लोगों को नर्मदा का पानी उपलब्ध नहीं हो पाया है।

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