राजस्व मंडल के हाल बेहाल…किसानों की सुनवाई नहीं…चलता कर देते है
उज्जैन। उज्जैन जिले के किसान अपनी समस्याओं की सुनवाई नहीं होने के कारण परेशान है। दरअसल एमपी के राजस्व मंडल के हाल बेहाल है और यहां न तो अन्य लोगों की सुनवाई हो रही है वहीं किसान भी सुनवाई नहीं होने से परेशान है। किसानों का कहना है कि उनकी सुनवाई नहीं होती है और उनकी बातों को अनदेखा करते हुए चलता कर दिया जाता है। बता दें कि राजस्व मंडल में राजस्व संबंधित प्रकरणों की सुनवाई कर निराकरण किया जाता है लेकिन राजस्व मंडल में स्थिति यह है कि न तो जिले की और न प्रदेश के अन्य किसानों की या अन्य लोगों के राजस्व संबंधित प्रकरणों का निपटारा हो रहा है।
भोपाल से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदेश के राजस्व से जुड़े बड़े मामलों को निपटाने के लिए गठित राजस्व मंडल सफेद हाथी साबित हो रहा है। राज्य शासन की बेरुखी के चलते यहां या तो अधिकारी पदस्थ नहीं किए जा रहे या फिर बार बार उनका तबादला कर दिया जाता है। जिससे कोरम के अभाव में नियमित बेंच नहीं लग पा रही है। हालात यह हैं कि प्रदेश भर के किसान और अन्य लोग यहां सुनवाई के लिए आते हैं तो उन्हें तारीख देकर चलता कर दिया जाता है। यही कारण है कि यहां लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस समय यहां दस से बारह हजार मामले लंबित हैं। मध्य भारत क्षेत्र में मध्य भारत राजस्व मंडल अध्यादेश 1948 के अधीन राजस्व मंडल का गठन किया गया था। मंडल का गठन मप्र भू राजस्व संहिता 1959 के अंतर्गत किया गया है। राजस्व मंडल प्रदेश में भू-राजस्व संहिता के अन्तर्गत राजस्व प्रकरणों की अपील-निगरानी सुनने की उच्चतम संस्था है। राज्य शासन द्वारा ग्वालियर को मंडल का प्रधान स्थान नियत किया गया है। राजस्व मंडल में द्वितीय अपील आती हैं।
वर्ष 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राजस्व मंडल की समीक्षा करने की शक्ति को खत्म कर दिया था, इसलिए रिवीजन के पुराने मामले ही चल रहे हैं। अब राजस्व मंडल बंटवारे-नामांतरण की द्वितीय अपील सुनता है। सीमांकन तक के मामले यहां नहीं आते हैं, वे सीधे एसडीएम के बाद लोगों को कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। राजस्व मंडल में मामलों की नियमित सुनवाई नहीं होने से लंबित मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। स्थिति यह है कि जिन मामलों की सुनवाई की तारीख आती है तो उन्हें अगली तारीख दे दी जाती है। राजस्व मंडल का कोरम पूरा न होने पर राजस्व मंडल कार्य नहीं करता है। यहां आने वाले केसों में तारीख लगा दी जाती है। जिन पीड़ितों को न्याय चाहिए वे उम्मीद लगाए बैठे हैं, उन्हें कोर्ट की शरण लेना पड़ रही है। मंडल में मौजूद स्टाफ के अनुसार यहां अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारी आते हैं, बैठते हैं, लेकिन एक सदस्य का पद खाली होने के कारण काम नहीं करते।
भोपाल से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदेश के राजस्व से जुड़े बड़े मामलों को निपटाने के लिए गठित राजस्व मंडल सफेद हाथी साबित हो रहा है। राज्य शासन की बेरुखी के चलते यहां या तो अधिकारी पदस्थ नहीं किए जा रहे या फिर बार बार उनका तबादला कर दिया जाता है। जिससे कोरम के अभाव में नियमित बेंच नहीं लग पा रही है। हालात यह हैं कि प्रदेश भर के किसान और अन्य लोग यहां सुनवाई के लिए आते हैं तो उन्हें तारीख देकर चलता कर दिया जाता है। यही कारण है कि यहां लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस समय यहां दस से बारह हजार मामले लंबित हैं। मध्य भारत क्षेत्र में मध्य भारत राजस्व मंडल अध्यादेश 1948 के अधीन राजस्व मंडल का गठन किया गया था। मंडल का गठन मप्र भू राजस्व संहिता 1959 के अंतर्गत किया गया है। राजस्व मंडल प्रदेश में भू-राजस्व संहिता के अन्तर्गत राजस्व प्रकरणों की अपील-निगरानी सुनने की उच्चतम संस्था है। राज्य शासन द्वारा ग्वालियर को मंडल का प्रधान स्थान नियत किया गया है। राजस्व मंडल में द्वितीय अपील आती हैं।
वर्ष 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राजस्व मंडल की समीक्षा करने की शक्ति को खत्म कर दिया था, इसलिए रिवीजन के पुराने मामले ही चल रहे हैं। अब राजस्व मंडल बंटवारे-नामांतरण की द्वितीय अपील सुनता है। सीमांकन तक के मामले यहां नहीं आते हैं, वे सीधे एसडीएम के बाद लोगों को कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। राजस्व मंडल में मामलों की नियमित सुनवाई नहीं होने से लंबित मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। स्थिति यह है कि जिन मामलों की सुनवाई की तारीख आती है तो उन्हें अगली तारीख दे दी जाती है। राजस्व मंडल का कोरम पूरा न होने पर राजस्व मंडल कार्य नहीं करता है। यहां आने वाले केसों में तारीख लगा दी जाती है। जिन पीड़ितों को न्याय चाहिए वे उम्मीद लगाए बैठे हैं, उन्हें कोर्ट की शरण लेना पड़ रही है। मंडल में मौजूद स्टाफ के अनुसार यहां अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारी आते हैं, बैठते हैं, लेकिन एक सदस्य का पद खाली होने के कारण काम नहीं करते।