खुसूर-फुसूर

विरान एक बार फिर उद्योग से आबाद

दु:ख आता है तो सुख भी आता है। विरानी के बाद आबाद स्थिति भी बनती है। उज्जैन ने यही सब आजादी के बीते 7 दशक में देखा है। कभी उद्योगों को लेकर उज्जैन देश भर में अपनी पहचान रखता था। समय बीता एक के बाद एक उद्योग धीरे-धीरे बंद होते चले गए। यहां तक की अंतिम दौर में लगी शासकीय सोयाबीन प्लांट भी बंद हो गया और उसके कर्मचारियों को यत्र-तत्र मर्ज किया गया। इन सभी उद्योगों को तत्कालीन सरकारों ने लंबी चौडी जमीनें उद्योग स्थापन के लिए लीज पर दी । इनक अतिरिक्त अनेक कारखानों को लीज पर जमीनें दी गई । यहां तक की मक्सी रोड के श्री उद्योग के लिए तो स्टेट के बीड के नियमों को भी तोड दिया गया। प्रबंधन की कमी या यूं कहें की नितियों के कारण एक-एक कर उद्योगों ने दम तोडा और मजदूरों का पैसा आज भी कई मिलों और उद्योगों का बकाया है। जिले में एक बार फिर से विरानी में बहार आई है। विक्रम उद्योगपुरी में वहीं कल कारखानों की बडी हलचल शुरू हो गई है। सोयाबीन प्लांट के स्थान पर वस्त्र उद्योग में लोगों को रोजगार मिला है। एक बार फिर से दु:ख के दिन बीतने को हैं। युवाओं के पलायन पर रोक की स्थिति बनने के हालात बन रहे हैं। विरानी में बहार आने लगी है। ये सब धरातल के प्रयासों से हुआ है। शासन की विशेष देखरेख एवं समर्पित भाव से काम करने वाले अधिकारी के कारण यह सब सामने आया है। खुसूर-फुसूर है कि अगर अफसर अपनी पर उतर आए तो असंभव शब्द कहीं टिक नहीं सकता है। जिस परिसर में मेडिकल कालेज के भूमिपूजन पर बवाल हो गया था और विरोध न्यायालय की दहलीज तक पहुंच गया था उसी के आसपास आईटी पार्क बनने के लिए तैयारी है।

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