राजस्व वसूली के पुराने कर व नियमों पर प्रशासन नहीं दें रहा ध्यान
नियमों से अनजान आरआई-पटवारी, शासन को हो रही राजस्व की हानी
इंदौर। राजस्व वसूली के लिए बनाए गए नियम वर्तमान राजस्व निरीक्षक और पटवारी जानते ही नहीं है जिसके अनुसार वसूली नहीं होने से शासन को हर साल राजस्व की हानि होती है। नियमों से अनजान अधिकारी भी इस पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं।
भू राजस्व संहिता के अनुसार प्रत्येक क्षेत्र में किसानों से लगान वसूली के लिए अलग-अलग तरह के नियम बनाए गए थे।
जिसमें भू राजस्व के साथ ही वाणिज्य कर शिवाय आय कर को लेकर भी अभियान चलाया जाता था। वर्तमान में स्थितियां है कि अधिकांश राजस्व निरीक्षक और पटवारी को प्रशिक्षण के दौरान उक्त कर क्या है तथा उसकी गणना किस तरह से की जाना है यह सिखाया ही नहीं जाता।
उक्त दोनों कर को लेकर जिले में कुछ अधिकारी भी नियम नहीं जानते। जब अधिकारी और पटवारी को ही नियम नहीं मालूम है तो वसूली किस आधार पर होगी वसूली नहीं होने से जिले को हर साल लाखों रुपए के राजस्व की हानि होती है। वाणिज्य कर मुख्य रूप से दलहन और तिलहन की चुनिंदा फसल पर लगाया जाता रहा है।
वर्तमान में वाणिज्य कर के दायरे में तिल्ली और सोयाबीन की फसल आती है जिस पर वसूली के लिए कर निर्धारण की गणना करना ही मुश्किल हो रहा है मामले में कुछ अधिकारियों का कहना है कि नियम सभी पर लागू है और पटवारी अपनी जेब से या राशि चुपचाप जमा कर देते हैं जिसके चलते यह जानकारी अलग से जुटाई नहीं जा सकती।
आय का सहायक स्त्रोत है शिवाय आय —
ग्रामीण क्षेत्रों में शासकीय भूमि पर लगे फलदार पेड़ से हर साल आने पर नीलामी कर सरकार राशि एकत्रित करती रही है किंतु वर्तमान में किस गांव में कितने सरकारी भूमि पर पेड़ है उसकी संख्या ही कोटवार और पटवारी को ज्ञात नहीं है।
इसको लेकर किसी भी तहसील ने गणना करना उचित नहीं समझा जबकि उक्त पेड़ राजस्व की अतिरिक्त आय का मुख्य साधन है। यही नहीं इस आय के अंतर्गत बरसात के दिनों में नदी के आसपास की भूमि जहां बारिश के पानी से नया क्षेत्र तैयार हो जाता है और नदी के बहन का स्थान बदल जाता है यह भूमि शासकीय आएगा साधन होती है जिसे समय विशेष के लिए कृषि के लिए किसानों को लीज पर दिया जाता रहा है किंतु वर्तमान में इस तरह की भूमि की जानकारी किसी भी तहसील में जुटाई नहीं गई है।
कृषि भूमि नामांतरण के समय वस्तु स्थिति का नहीं होता प्रमाणीकरण बड़ा संहिता के नियमों के अनुसार कृषि भूमि पर स्थित प्रत्येक निर्माण या पेड़ आदि की जानकारी अंकित की जाती रही है।
खसरा इसका मुख्य दस्तावेज है जिसमें भूमि में बने हुए मकान नलकूप पेड़ आदि की जानकारी अंकित की जाती रही है। वर्तमान खसरे में यदि देखें तो भूमि का उपयोग भूमि का स्वामित्व और भूमि स्वामी की जानकारी के अतिरिक्त यहां कोई जानकारी नहीं दी जाती कुछ खसरों में मकान या कॉलोनी आदि की जानकारी अंकित की जा रही है।
खसरे में इस तरह की जानकारी नहीं होने से भी शासन को हर साल करोड़ों के राजस्व की हानि होती है। हर साल गाइडलाइन निर्माण के समय प्रत्येक भूमि के साथ ही पेड़ निर्माण कार्य हुआ नलकूप आदि को लेकर भी दर का निर्धारण होता है।
खसरा में यह जानकारी अंकित नहीं होने से जमीनों के क्रय विक्रय के समय डर के अनुसार अतिरिक्त निर्माण या पेड़ अधिक को लेकर राशि वसूली नहीं जा सकती। जबकि प्रत्येक कृषि भूमि में कई उपयोगी और सामान्य पेड़ लगे हुए हैं यही नहीं अधिकांश जगहों पर केन और नलकूप भी है इसकी जानकारी भी होना जरूरी है इमारती लकडी आदि को लेकर तहसीलदार और एसडीएम कटाई करने की अनुमति तो जारी करते हैं किंतु खसरे में पेड का उल्लेख ही नहीं है तो किस आधार पर यह माना जाता है कि उक्त पेड़ उनके खेत का हिस्सा रहा है।